//विद्या विनयेने
शोभते //
विज्ञान
आश्रम ,पाबळ
डिप्लोमा इन
बेसिक रुरल टेक्नोलॉजी { डी.बी.आर.टी.}
सन
:-२०१६-२०१७
प्रकल्प
विभाग :- शेती व पशुपालन
प्रकल्पाचे नाव :- धिंगरी अळंबी :लागवड तंत्रज्ञान
विद्यार्थ्याचे नाव :- 1] सुदर्शन मोहन फासे.
2]तेजस अशोक धाडवे.
प्रकल्प सुरु करण्याची दिनांक :- १२/१/२०१७
मार्गदर्शक शिक्षक :- श्री.
लोखंडे सर .
प्रेरणास्थान :- श्री. शानबाग सर
.
-: अनुक्रमणिका :-
अनु.क्रमांक
|
घटकाचे नाव
|
पृष्ठ क्रमांक
|
१]
|
प्रस्तावना
.
|
०१
|
२]
|
धिंगरी अळंबी च्या जाती
|
०२
|
३]
|
धिंगरी
अळंबीची सुधारित पध्द्त
|
०३
|
४]
|
अळंबीवरील रोग
|
०४
|
५]
|
अळंबीवरील
किडी
|
०५
|
६]
|
अळंबी काढणी पध्द्त
|
०६
|
७]
|
यांत्रिकीकरण
|
०७
|
८]
|
प्रतवारी व पॅकिंग
|
०८
|
९]
|
अळंबी
मूल्यवर्धन
|
०९
|
१०]
|
अळंबी प्रकल्प छायाचित्रे
|
१०
|
११]
|
प्रात्यक्षिक
खर्च व नोंदी
|
११
|
१२]
|
अळंबी व्यवसायाचे अर्थशात्र
|
१२
|
१३]
|
अळंबीचे
खाद्य पदार्थ
|
१३
|
१४]
|
अनुमान
|
१४
|
१५]
|
निरीक्षण
|
१५
|
१६]
|
संदर्भ
|
१६
|
१७]
|
अभिप्राय
लेखन
|
१७
|
अनु क्रमांक
|
खर्चाचा तपशील
|
नग
|
किंमत
|
एकूण खर्च
|
१]
|
कडबा कटर
|
१
|
३०००
|
३०००
|
2]
|
स्प्रेअर
|
१
|
१०००
|
१०००
|
३]
|
बायलर १०० ली.
क्षमता .
|
२
|
१०००
|
१०००
|
४]
|
मश्रूम हाउस
|
१
|
३०००
|
३०००
|
५]
|
सुधारित चूल
|
१
|
३००
|
३००
|
६]
|
एकून
रुपये :-
|
-
|
-
|
९,३००
|
अनु क्रमांक
|
खर्चाचा तपशील
|
नग
|
किंमत
|
एकूण खर्च
|
१]
|
काड
|
५
|
७५०
|
३७५०
|
2]
|
Plastic पिशवी
(८० गेज)बेडसाठी
|
१००
|
८०
|
८०००
|
३]
|
Plastic पिशवी
प्याकिंगसाठी
|
१६
|
८०
|
१२८०
|
४]
|
फवारणी औषध
|
-
|
-
|
५००
|
५]
|
विजेचे बिल
|
-
|
-
|
२५०
|
६]
|
कंतान (मीटर )
|
२०
|
२०
|
४००
|
७]
|
Plastic बकेट
|
४
|
५०
|
२००
|
८]
|
Plastic ट्रे
|
४
|
३०
|
१२०
|
९]
|
सुतळ
|
-
|
-
|
१००
|
१०]
|
चुनखडी (दारात
टाकण्यासाठी )
|
२
|
५
|
१०
|
११]
|
मजुरी
|
३६५
|
२०
|
७३००
|
१२]
|
एकूण
खर्च :-
|
२१,९१०
|
५ किलो अळंबी उत्पादनासाठी
|
|
१] खेळते भांडवल
|
- २१,९१०
|
2] भांडवलाकरिता
व्याज (१८%)
|
- १,६७४
|
३] भांडवलावरील
घसारा स्थिर
|
- ९३०
|
४] एकून रुपये
|
- २४,५१४
|
५ किलो अळंबी उत्पादनासाठी
|
|
किलो. रुपये .
|
|
1] विक्री दर (रुपये
५० प्रती कि. -
|
2,३७५ १,१८,७५०
|
2] एकून खर्च -
|
-
२४,५१४
|
3] निव्वळ उत्पन्न /वर्ष -
|
- ९४,२३८
|
बेड क्रमांक .
|
1[BK]
|
२[BK]
|
३[ JK ]
|
४[JP ]
|
५ [ JP ]
|
६ [UV ]
|
७ [BB]
|
८[G]
|
९[XX]
|
१०[XX]
|
बेडचे वजन
|
2.873
|
2.920
|
4.780
|
2.120
|
3.002
|
3.350
|
4.854
|
2.246
|
5.503
|
2.612
|
पिशवी वजन
|
13gm
|
13gm
|
13gm
|
13gm
|
13gm
|
13gm
|
13gm
|
13gm
|
13gm
|
13gm
|
भुसा /काड
|
2.760
|
2.197
|
4.667
|
1.987
|
2.889
|
3.237
|
4.741
|
2.133
|
5.390
|
2.499
|
स्पॉनचे वजन
|
100gm
|
100gm
|
100gm
|
100gm
|
100gm
|
100gm
|
100gm
|
100
gm
|
100
gm
|
100gm
|
५०% उत्पादन
|
359
gm
|
560
gm
|
296
gm
|
378
gm
|
156
Gm
|
215
gm
|
479
gm
|
220
gm
|
216
gm
|
296
gm
|
३५% उत्पादन
|
150
gm
|
280
gm
|
100
gm
|
205
gm
|
85
gm
|
150
gm
|
302
gm
|
150
gm
|
96
gm
|
180
gm
|
१५% उत्पादन
|
50
gm
|
80
gm
|
45
gm
|
35
gm
|
30
gm
|
15
gm
|
10
gm
|
--
|
18
gm
|
20
gm
|
एकून उत्पादन
|
559
gm
|
920
gm
|
441
gm
|
618
gm
|
271
gm
|
380
gm
|
791
gm
|
370
gm
|
330
gm
|
496
gm
|
अनु क्रमांक
|
दिनांक
|
वार
|
ड्रायरमध्ये
ठेवलेले व काढलेली वेळ
|
ओली
अळंबी
वजन
|
ड्राय अळंबी वजन
|
LOD
|
किंमत
|
||
१]
|
३१/१/२०१७
|
मंगळवार
|
५.२००
|
१२ .१०
|
१.१००kg
|
76.47gm
|
1.026gm
|
320/-
|
|
२]
|
३/२/२०१७
|
शुक्रवार
|
२.१२
|
१०.१५
|
१.१४१kg
|
90.20gm
|
1.051gm
|
248/-
|
|
३]
|
१०/२/२०१७
|
गुरुवार
|
४.१०
|
९.४०
|
२८० gm
|
26.12gm
|
254gm
|
56/-
|
|
४]
|
१५/२/२०१७
|
बुधवार
|
१२.१५
|
१०.००
|
160 gm
|
11.33gm
|
973gm
|
35/-
|
|
एकून :
|
_
|
_
|
_
|
_
|
२.६८१kg
|
४०८.२४gm
|
4.104kg
|
659/-
|
|
अनु क्र
|
मालाचे नाव
|
एकून माल
|
दर
|
एकूण किंमत
|
१]
|
स्पॉन
|
१kg
|
70
|
70
|
2]
|
बाविस्टीन
|
21gm
|
160
|
33.6
|
३]
|
फोर्मेलीन
|
241ml
|
50
|
12.05
|
४]
|
गोणपाट
|
5
|
10
|
50
|
५]
|
पिशवी
|
10
|
5
|
50
|
६]
|
सुतळी
|
2mtr.
|
10
|
10
|
७]
|
नायलॉन दोरी
|
5mtr.
|
50
|
50
|
८]
|
पाईप
|
3mtr.
|
230{10}
|
69
|
९]
|
फोगर
|
9
|
3
|
27
|
१०]
|
लॉक
|
1
|
5
|
5
|
१२]
|
Lbo
|
2
|
5
|
10
|
१२]
|
हुक
|
2
|
5
|
10
|
१३]
|
मजुरी
|
-
|
15%
|
99.16
|
१४]
|
एकून खर्च
|
495.81
|
प्रस्तावना :
अळंबी म्हणजे अग्यारीक्स
प्रवर्गातील आहारात अन्न म्हणून उपयोगी बुरशी होय .या बुरशीची पूर्ण वाढ
झाल्यानंतर यास फळे येतात व या फळांस “अळंबी” किव्हा “भूछत्र” म्हणतात .तसेच
इंग्रजीत मश्रूम या नवाने ओळखले जाते. अळंबी निसर्गात अनेक प्रकार आहेत.अनेक
शेतकरी शेतीला जोडधंदा म्हणून कमी भांडवलात व आहारात उपयुक्त अशी धिंगरी अळंबी
उत्पादन करतात. या अळंबीस “शिंपला” किवा “पावसाळी छत्री” अशा नावाने सुद्धा ओळखले
जाते.
धिंगरी अळंबीच्या जाती व वैशिट्ये :
धिंगरी अळंबीच्या रंग ,रूप ,आकारमान व तापमानाची अनुकुलता यानुसार प्रयोग
शाळेत व निवड चाचणीद्वारे विक्षित केलेल्या महाराष्ट्रात प्रचलित असणाऱ्या विविध
जाती खालील प्रमाणे आहेत.
१] प्लुरोटस साजर काजू
2] प्लुरोटस इओस
३] प्लुरोटस फ्लोरिडा
इत्यादी जाती आहेत .
१] प्लुरोटस
साजर काजू :-
१] या जातीची फळे करड्या रंगाची असतात
.
2] तापमान व आद्रता फरकास जास्त
लागते .
३] आवश्यक तापमान २०-३० से.ग्रे.व
आद्रता ८० -९०%
४] फळे शिंपल्याच्या आकाराची ,आकर्षक
व चविष्ट असल्याने चांगली मागणी आहे.
धिंगरी अळंबी लागवडीची सुधारित पद्धत :-
१]लागवडीसाठी जागेची निवड :-
अळंबीच्या
लागवडीसाठी उन ,वारा, पाउस या पासून संरक्षण होईल असा निवाऱ्याची गरज आहे .पक्के
अथवा कच्चे बांधकाम असलेली खोली अथवा शेड ,आच्छादित असलेली झोपडी असावी .या
जागेमध्ये तीव्र सुर्यप्रकाश नसावा व हवा खेळती राहील याची दक्षता घ्यावी लागते
.
2] लागवडीचे माध्यम :-
धिंगरी अळंबीच्या
लागवडीसाठी पिष्ठमय पदार्थ अधिक असणारी घटकांची आवशक्यता असते .यासाठी शेतातील
पिकांचे अवशेष ,भातपेंडा ,गव्हाचे काड ,ज्वारी ,बाजरी ,मका यांची ताटे व पाने
,कपाशी ,सोयाबीन ,तूर काड्या ,उसाचे पाचट .नारळ व केळी यांची पाने भुईमुगाच्या
शेंगाची टरफले ,वाळलेले गवत व पालापाचोळा इत्यादी घटकांचा वापर करता येतो .
३] लागवडीचे
वातावरण :-
धिंगरी अळंबीच्या
लागवडीसाठी नैसर्गिक तापमान २२ते ३० से.व हवेती आद्रता ६५ ते ९०% असणे आवश्यक असते
.यासाटी लागवडीच्या ठिकाणी तापमान व आद्रता यांचे नियंत्रण ठेवण्यासाठी जमिनीवर
,हवेत चोहोबाजूंनी गोणपाटाचे आवरण लावून त्यावर स्प्रे पंपाने पाणी फवारण्याची
व्यवस्था करावी .सर्वसाधारण २५ से.या तापमानास या अळंबीची उत्तम वाढ होते.
४] लागवडीचे पद्धत :-
काडाचे २ ते ३ से.मी. लांबीचे
बारीक तुकडे पोत्यामध्ये भरून थंड पाण्यात ६ ते ८ तास बुडून भिजत घालावे .काडाचे
पोते थंड पाण्यातून काडून त्यातील जादापाण्याचा निचरा करावा .
.
५] काढ निर्जंतुकीकरन : -
भिजवलेल्या काडचे
पोते 80 से.तपमानाच्या गरम पाण्यात १ तास बुडवावे. काडचे पोते गरम पाण्यातून काडून
त्यातील जादा पाणी निथळल्यानंतर तसेच थंड होण्यासाठी तीवईवर ठेवावे .अथवा
भिजवलेल्या काडचे पोते 80 से.तपमानाला वाफेवर १ तास ठेवून काढ निर्जंतुकीकरन करावे
.काढ ठाण कण्यासाठी पोत्यासह सावलीत ठेवावे .अथवा निर्जंतुकीकरणासाठी
७.५ ग्र्याम बाविस्टीन व १२५ मिली .फोर्मेलीन १०० लिटर पाण्यात मिसळून
त्यामध्ये वाळलेले काढ पोत्यात भरून १६ ते १८ तास भिजत ठेवावे .द्रावणातील काड
पोत्यासह बाहेर काडून जादा पाण्याचा निचरा करण्यासाठी ४ते५ तास ठेवावे .नंतर काड
३५ सेमी.*५५ सेमी आकाराच्या ५फोर्मेलीन ने निर्जंतुक केलेल्या plyasthik पिशवी
मध्ये थर पद्धतीने भरावे. करावे .
काड भरताना प्रथम पिशवीच्या तळाला अळंबीचे
थोडेसे बीयाने टाकावे .नंतर ८-१० सेमी.जाडीचा काडाचा थर द्यावा.व त्यावर अळंबीचे
थोडेसे बीयाने टाकावे.बियाणाचे प्रमाण काडाच्या वजनाच्या २% असावे .काढ व बिया
यांचे ४ते५ थर भरावे .भरताना तळहाताने काढ थोडेसे दाबावे .पिशवी भरल्यानंतर
दोर्याने पिशवीचे तोंड बांधावे .पिशवीच्या पृष्ठभागावर सुई /टाचणी च्या सहायाने
छिद्रे पाडावीत
अळंबीच्या बुर्शीच्या
वाढीसाठी भरलेल्या पिशव्या मांडणीवर ठेवाव्यात .त्यासाठी २५-२८ से.तापमान अनुकूल
असते .बुरशीची पांढरट वाढ सर्व काडांवर दिसून आल्यावर पिशवी कडून टाकावी .
बुर्शीच्या वाढीसाठी १५ते १८ दिवस लागतात .बुरशीच्या धाग्यांनी काढ घट्ट चिटकून
त्यास ढेपेचा आकार प्राप्त होतो .त्यास बेड म्हणतात .
६] पिक निगा :-
योग्य अंतरावर अळंबीचे
बेड ठेवावेत .बेडवर दिवसातून 2 ते३ वेळा पाण्याची हलकी फवारणी करावी .खोलीमध्ये
जमिनीवर ,भिंतींवर पाणी फवारून तापमान व आद्रता योग्य प्रमाणात ठेवावी .३ ते ४
दिवसांत बेडच्या सभोवताली अंकुर दिसू लागतील व पुढील ३ ते ४ दिवसांत त्याची
झपाट्याने वाढ होहून फळे काढणीस तयार होतील .
७] खते व पाणी व्यवस्थापन :-
अळंबी ,तंतुमय
वाळलेल्या अवशेषांवर वाढते .पिशवीतून बाहेर काढल्यानंतर धिंगरी वाडीच्या काळात
बेडवर दिवसातून 2 ते ३ वेळा पाण्याची फवारणी करावी .पिकाच्या वाडीच्या काळात
तापमान २० ते ३० से. व आद्रता ७० ते ९० % ठेवणे गरजेचे आहे .
८] पिकाचे संवरक्षण :-
अळंबी हे अतिशय
नाजूक,नाशिवंत व अल्प मुदतीचे पिक आहे.उग्व्निसती वापरलेले काढ व इतर घटकांचे
व्यवस्थित निर्जंतुकीकरण ण झाल्यास तसेच खोलीमधील तापमान व आद्रता यामध्ये मोठा
फरक झाल्यास तत्काळ रोग व किडीचा प्रादुरभाव दिसून येतो .त्यामुळे पिकांचे नुकसान
होते .धिंगरी अळंबी वरील पुढील रोग दिसून येतात .
अळंबीवरील रोग :-
१] ग्रीन मोल्ड :-
हा रोग ट्रायकोडर्मा या
बुरशी मुले होतो . अळंबीच्या बुर्शीच्या वाढीसाठी पिशवीत काडावर ट्रायकोडर्मा या बुरशी वाढ होवून
काडावर हिरवट काळे डाग पडून काढ कुजते .या काडावर अळंबीच्या बुरशीची वाढ होत नाही
.फळे येण्याच्या काळात या रोगचा परिणाम झाल्यावर काळे डाग पडून फळे कुजतात .काडाचे
निर्जंतुकीकरण योग्यरित्या ण झाल्यास या रोगचा परिणाम होतो व हवा ,पाणी यांद्वारे
याचा प्रसार इतर अनेक पिशव्यामद्ये होवून नुकसान होते .
उपाय :- १]अळंबीच्या लागवडीसठी वापरण्यात
येणारे काढ काळजीपूर्वक निर्जंतुक करावे .
2] हाताना निर्जंतुक औषध लावून
पिशव्यांची हाताळणी करावी .
३] या रोगांचा परिणाम दिसून
येताच रोगग्रस्त पिशव्या तत्काळ वेगळ्या करव्यात .
४] बेडवर 2%तीव्रतेचे
फोर्मेलीन फवारणी करावी .
५] कार्बेडेझीम ०.१% किवा
बेनलेट ०.०५ % द्रावणाची एका आठवड्यात अंतराने फवारणी करावी .
2] विषारी काळ्या छत्र्या :-
हा रोग कॉप्रीनस
या बुरशीपासून होतो .पिशवीत अळंबीच्या बुरशीची वाढ होत असताना कॉप्रीनस या बुरशीची
वाढ होते .बेड सोडल्यानंतर अळंबीच्या फळाऐवजी काळ्या रंगाच्या असंख्य छत्र्या
काडावर दिसून येतात.
उपाय :-१] अळंबीच्या लागवडीसठी वापरण्यात येणारे
काढ काळजीपूर्वक निर्जंतुक करावे .
2] बेडवर जास्त पाणी मारू नये .
३] बेडवर काळ्या छत्र्या दिसताच हाताने कडून टाकाव्यात .
अळंबीवरील किडी :-
१] शिरीड माशी :-हि माशी रंगाने काळ्या
रंगाची असून २ ते ३ मी.मी.लांब असते .या माशीची अली मळ कट पानडरी असते .डोक्यावर
चकचकीत काळा ठिपका असतो .हि अली अळंबीची बुरशी खाते तसेच फळातील रस शोसून उपजीविका
करते त्यामुळे पिकांचे ६०% नुकसान होते .
उपाय :-१] अळंबीच्या लागवडीसठी
वापरण्यात येणारे काढ काळजीपूर्वक
निर्जंतुक करावे .
२] माशा आत येऊ नये म्हणून लहान छिद्रे असणारी जाली बांधाव्यात .
३] माशांचा परिणाम दिसताच खोल्यांमध्ये मॅलेथिआन /नुवान ०.०१ % या कीटकनाशक
फवारावे .
२] फ्लोरिडा माशी :- हि माशी रंगाने
फिकट तपकिरी असून या माशीची पूर्ण वाढलेली अली मळ कट पंडरी व ३ मी.मी लांब असते
.हि माशी अळंबीच्या खालच्या भागातील कल्याणवर अंडी घालते .अंड्यातून बाहेर पडलेली
अली धिंगरीच्या फळांमधील रस सोसून घेते .त्यामुळे फळांची वाढ व्यवस्तीत न होता
मोटे नुकसान होते .
उपाय :- १] या माशीचा परिणाम दिसताच डायक्लोरोव्हास १ ली
.पाण्यात १ मिली. / मॅलेथिआन १लि .पाण्यात २मिलि फवारणी करावी .
२] अळंबीच्या लागवडीसठी
वापरण्यात येणारे काढ काळजीपूर्वक
निर्जंतुक करावे.
३] बेडवर फळे असताना कोणत्याही
कीटकनाशकाची अथवा बुरशी नाशकाची फवारणी करू नये .
काढणी :-
पहिली काढणी पिशवी
भरल्यापासून २० ते २५ दिवसांत करावी काढणीपुर्वी १ दिवस अगोदर अळंबीवर पाणी फवारू
नये .यामुळे अळंबी कोरडी व तजेलदार रहाते . अळंबीच्या कडा आत वळण्यापूर्वी काढणी
करावी लहानमोठी सर्व अळंबी एकाच वेळी कडून घ्यावी
अळंबीच्या देठाला धरून पिरगळून काढणी करावी .दुसरे पिक घेण्यापूर्वी त्याच
बेडवर हलका हात फिरवून कुजलेल्या व मोकळ्या झालेल्या काडाचा पातळसा थर अलगद काढावा
.दिवसांतून २ ते ३ वेळा नियमिथ पाणी द्यावे .८ ते १० दिवसांनी दुसरे पिक तयार होते
.त्यानंतर ८ ते १० दिवसांनी तिसरे पिक मिळते .साधारणपणे ३ किलो ओल्या कडच्या एका
बेडपासून 40 ते ५० दिवसात १ किलो ताज्या अळंबीचे उत्पादन मिळते .
यांत्रिकीकरण :-
वेळ कमी करण्यासाठी च
मजुरांवरील खर्च कमी करण्यासाठी तसेच प्रतीदिनी ५०० किलो अळंबीचे उत्पादन घेणाऱ्या
मोठ्या युनिट मध्ये “यांत्रिकीकरण” शक्य आहे .यामध्ये काडाचे तुकडे करण्यासाठी
चॉपकटर मशीन ,काडचे निर्जंतुकीकरण करण्यासाठी बॉयलर वापरणे तसेच काढ पिशवीत भरणे व
अळंबीचे स्पॉन काडत मिसळणे यासाठी लागणारी यंत्र सामुग्री बाजारात उपलब्ध आहे
.बाजारात धिंगरी अळंबीस मागणी वाढल्यास यांत्रिकीकरनतून मोठ्या प्रमाणात उत्पादन
घेणे शक्य आहे .
प्रतवारी व पॅकेजिंग :-
१] अळंबी साठवणूक :- ताजी अळंबी
पालेभाजीप्रमाने अल्प काळात टिकणारी व नाशवंत आहे .काढणी नंतर काडीकचरा बाजूला
काडून साफ अळंबी छिद्रे पाडलेल्या plyastik पिशवीत दोन दिवस टाकून रहाते
.फ्रीजमध्ये ३ ते ४ दिवस टिकते . ताजी अळंबी बाजारपेठ नसल्यास अळंबी उनामध्ये
वळवावी .अळंबी उनामध्ये २ ते ३ दिवसात पूर्णपणे वाळते. वाळलेली अळंबी plyastik
पिशवीत सील करून हवाबंद ठेवल्यास ती ६ महिन्यापेक्षा अधिक काल चांगल्या स्थितीत
राहते .
वाळलेल्या अळंबीचे वजन ओल्या अळंबीच्या वजनाच्या १/१० इतके कमी होते .
२]अळंबी मूल्यवर्धन :-
अळंबीमध्ये प्रथिने ,व
जीवनसत्त्वे खनिज पदार्थ मोठ्या प्रमाणात असतात
त्यामुळे अळंबी पूरक अन्न म्हणून वापरले जाते .ताजी अळंबी किंव्हा वाळलेली
अळंबी विकण्यापेक्षा त्यावर प्रक्रिया करून अनेक पदार्थ तयार करून विकले तर
शेतकऱ्यांस अधिक फायदा होतो .
३]अळंबीपासुन मूल्यवर्धित पदार्थ :-
वाळलेल्या अळंबीची
पावडर तयार करून त्यापासून सुप तयार करता येते .
तसेच पावडरचे लहान प्याकिंग करून विक्री करता येते . वाळलेल्या अळंबीची पावडर
तयार करून त्यापासून गोळ्या किंव्हा वड्या तयार करता येतात . अळंबीची पावडर तयार
करून त्यापासून पापड करता येतात .तसेच अळंबीचे लोणचे ,शेवया ,सांडगे ,चिप्स बनवतात
.अळंबी पासुन तत्काळ खाण्यालायक अनेक पदार्थ व पाककृती करता येते .अशा प्रकारे
अळंबीची भाजी ,पुलाव ,भजी ,समोसा ,वडे ,स्यालेड, कबाब,आम्लेट ,करी ,सॉस ,पिझ्झा
अशे अनेक पदार्थ बनविता येतात .
४] काही मुलभूत बाबींची माहिती असणे गरजेचे आहे :-
१] अळंबी हि वनस्पती कुळातील असून पूर्णतः शाकाहारी आहे .२] अळंबीच्या मुलाव्यतिरिक्त सर्व भाग खाण्यास योग्य अहेत .३]
बाजारात विक्रीस ठेवलेली अळंबी हि खाण्यायोग्य असतात .काही जंगली अळंबी विषारी
असतात .तेव्हा त्याबाबत ज्ञान असणे आवश्यक आहे .अळंबीची भजी करताना जास्त वेळ
शिजवू नये .५]अळंबी १० ते १५ मिनिटात शिजते .६] अळंबी पाण्यात जास्त वेळ धुवू नये
.त्यामुळे त्यातील जीवनसत्त्वे नष्ट होतात अळंबीचे महत्व
जनजागृती करून पटवून दिल्यास या पिकास भविष्यात निचित मागणी वाढणार आहे .
5] अळंबी लागवड व्यवसायाचे अर्थशास्त्र ;-
अळंबी लागवड व्यवसायात
आपण ज्या प्रतीची –सामुग्री वापरतो त्याच्या किंमती आणि अळंबीचे उत्पादन यावरच
संपूर्ण व्यवसायाचे अर्थशास्त्र अवलंबून आहे .८०० ग्र्याम गव्हाच्या काडापासून २००
ते ३०० ग्र्याम अळंबी मिळाली .तर हा व्यवसाय किफायतशीर ठरू शकेल .अळंबीचे उत्पन्न
हे परिसरातील हवामान आणि स्वच्छता यावरच अवलंबून आहे .
६] अळंबी लागवड व्यवसायाचे (वार्षिक)
अर्थशास्त्र ;-
{ ५ किलो अळंबी उत्पादनासाठी प्रती दिवस लागणारा खर्च :- }
अ] स्थिर भांडवल :-
ब ] खेळते भांडवल :-
क ] उत्पादनाचा खर्च :-
७] उत्पन्न :-
( Calculated at
50 % bioefficiency to substrate )
विज्ञान
आश्रम
धिंगरी अळंबी
प्रकल्प
सन :-२०१६-१७
१] धिंगरी अळंबी
प्रकल्प करण्यासाठी जागेची निवड :-
धिंगरी अळंबी प्रकल्प
करण्यासाठी जागेची निवड डोम मध्ये केली .कारण तेथे लागणारी आद्रता व तापमान समान
राखता येते .
२] साध्य :-
विविध काडाचा उपयोग करून
त्यात प्रती १०० ग्र्याम स्पोन टाकून त्यात उत्पादन मिळवणे हे या प्रकल्पामागचे
साध्य होते .
३] धिंगरी अळंबी
प्रकल्प करण्यासाठी वापरलेले रसायन [लिक्विड ] प्रमाणासह : १] काडाचे निर्जंतुकीकरण करण्यासाठी :-
१]
पाणी :- २२० मिली .
२]
फोर्मेलीन :-२२५ मिली .
३]बाविस्टीन
:- १५ ग्र्याम .
२] डोम निर्जंतुकीकरण करण्यासाठी :- १] पाणी :- ५ लिटर .
२]
फोर्मेलीन :- ८ मिली .
३] बाविस्टीन
:- ३ ग्र्याम .
३] बेड भरण्यासाठी वापरलेले साहित्य निर्जंतुकीकरण
करण्यासाठी :-
१] पाणी :- २
लिटर .
२]
फोर्मेलीन :- ५ मिली .
३]
बाविस्टीन :- २ ग्र्याम .
४] वापरलेले स्पॉनचे वजन :- १ किलो .
५] बेडचे वजनासह
उत्पादन दर्शवनारा तक्ता :-
६] वाळवलेली धिंगरी अळंबी :-
7 ] धिंगरी
अळंबीसाठी झालेला प्रात्यक्षिक खर्च :-
टीप :-
धिंगरी अळंबीची १ किलोची किंमत २००
रुपये आहे.
धिंगरी अळंबीची छायाचित्रे :-
8] अडचणी :-
१] बेड रनिंग रूम
नसल्यामुळे आम्हाला एकाच डोम मध्ये दोन रूम बनवाव्या लागल्या
२] हवेतील आद्ता व तापमान सेटिंग करने गरजेचे
होतो म्हणून प्रयत्न करताना अडचणी आल्या .३] बेड गोलाकार असल्याने फोगरद्वारे पाणी
देणारी पाईप लाईन करताना अडचण आली .
४] काडाचे तुकडे २ इन्च लांब असल्याने
बेड खरवडताना अडचण निर्माण झाली .
९] निरीक्षण :-
१] प्रती बेडनुसार विविध हालचाली
आढळल्या .
२] प्रती बेडनुसार उत्पादनाचे प्रमाण
कमी – जास्त होते .
३] बेडवरील काही मश्रूम छोटे – मोठे
होते .
४] एकाच दिवशी बेड भरले असता काही
बेडवर लवकर अळंबी आली .तर काही बेडवर नियमानुसार आले .त्यावरून काडणीची वेळ पुढे –मागे
झाली .
१० अनुमान :-
अळंबी लागवड व्यवसायात आपण
ज्या प्रतीची –सामुग्री वापरतो त्याच्या किंमती आणि अळंबीचे उत्पादन यावरच संपूर्ण
व्यवसायाचे अर्थशास्त्र अवलंबून आहे .८०० ग्र्याम गव्हाच्या काडापासून २०० ते ३००
ग्र्याम अळंबी मिळाली .तर हा व्यवसाय किफायतशीर ठरू शकेल .अळंबीचे उत्पन्न हे
परिसरातील हवामान आणि स्वच्छता यावरच अवलंबून आहे .
११] धिंगरी अळंबीचे पदार्थ :-
१] विज्ञान आश्रम मध्ये फूडल्याब असल्याने आम्ही मॅडमनी सांगितलेल्या
माहितीनुसार आम्ही अळंबीची भाजी व अळंबी
सुप बनवले .ड्राय मश्रूम विक्री करून भाजी कशी झाली हे तपासून पहिले .त्यामुळे
ग्राहकांना किती मश्रूम आवडतात हे त्यावरून समजले .
१२] संदर्भ :-
१] विषय शिक्षकांच्या
माहितीनुसार पुढील माहिती मिळवली .
२] हा प्रकल्प करताना सर्वप्रथम इंटरनेट वर
माहिती मिळवली .
३] ग्रंथालयातून अळंबी
संदर्भात पुस्तके वाचली .
४] कृषी विद्यापीठ ,पुणे इथून दुधी अळंबी व धिंगरी
अळंबी यांचे trenig घेतले .
५] मिळालेली
धिंगरी अळंबीचे पदार्थ बनवण्यासाठी फुडल्याब मॅडम यांकडून माहिती मिळवून मश्रुमचे
पदार्थ बनवले .
आलीम्बी प्रकल्पाची छान माहिती आहे.
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